Supreme Court : भारतीय समाज में बहू के अधिकारों को लेकर हमेशा से बहस होती रही है। खासकर जब बात ससुराल में महिला के रहने के अधिकार की हो, तो हालात और भी जटिल हो जाते हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से इस मामले में बड़ा बदलाव आया है। यह फैसला लाखों विवाहित महिलाओं के लिए राहत भरी खबर है।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा
यह मामला कर्नाटक का है, जहां एक महिला को हाईकोर्ट ने ससुराल का साझा घर खाली करने का आदेश दे दिया था। कोर्ट ने यह तर्क दिया था कि बहू को घर देने की जिम्मेदारी पति की है, न कि सास-ससुर की। इस आदेश के खिलाफ महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सास-ससुर ने वरिष्ठ नागरिक कानून 2007 का हवाला देते हुए अदालत से गुहार लगाई थी कि उनकी पुत्रवधू को बेंगलुरु स्थित उनके घर से बाहर किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट का साफ रुख
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि वरिष्ठ नागरिक कानून का मतलब यह नहीं है कि बहू को उसके निवास के अधिकार से वंचित कर दिया जाए। यह कानून बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए है, न कि बहू को घर से बाहर निकालने के लिए।
अदालत ने दो टूक कहा कि बहू को ससुराल के साझा घर में रहने का पूरा अधिकार है, और कोई भी बहाना बनाकर यह अधिकार नहीं छीना जा सकता।
साझे घर का मतलब क्या?
“साझा घर” उस घर को कहा जाता है जहां बहू और उसका पति एक साथ रहते हैं या रहते थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि वह घर संयुक्त रूप से इस्तेमाल किया जा रहा हो, तो बहू को वहां से निकाला नहीं जा सकता – चाहे वह संपत्ति सास-ससुर के नाम ही क्यों न हो।
संपत्ति में बहू के अधिकार: कौन सी स्थिति में क्या अधिकार?
- स्वअर्जित संपत्ति (सास-ससुर की व्यक्तिगत संपत्ति) में बहू का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता, जब तक कि वह पति के हिस्से से जुड़ा न हो।
- पति की पैतृक संपत्ति में बहू का अधिकार तभी बनता है जब पति उसे अपने नाम कर दे, या पति की मृत्यु के बाद वह हिस्सा उसे उत्तराधिकार में मिले।
- साझी संपत्ति (जहां बहू पति के साथ रहती है) में बहू को रहने का अधिकार प्राप्त है।
महिला अधिकारों की दिशा में अहम कदम
यह फैसला साफ संकेत देता है कि अब बहू को ससुराल से जबरन निकालना आसान नहीं होगा। यह महिला अधिकारों को मजबूती देने वाला निर्णय है और आने वाले समय में ऐसे मामलों में कानूनी मिसाल बनेगा।